Tuesday 12 May 2020

जीवन में उच्चता पैसों से नहीं सत्कार्यों से आती है ....


कश्मीर के महामनीषी कल्लट जो स्कंदकारिका के प्रणेता थे सच्चे अर्थों में ब्रामण थे।  उनका जीवन धर्म अपरिग्रह था । काशी नगरी के कुछ विद्धान ब्रामण एक बार उनके दर्शन करने के लिये आये थे । महामनीषी कल्लट बहुत ही अभावग्रस्त थे फिर भी उनसे जो भी बन सका उन्होंने उन अतिथि ब्रामणों का यथोचित सम्मान किया । विद्धानों को उन्हें अभावग्रस्त देख कर बहुत बुरा लगा और इसके लिए उन ब्रामणों ने कश्मीर नरेश को जाकर बहुत धिक्कारा ।

कश्मीर नरेश ने तत्काल एक जागीर का दानपत्र महामनीषी कल्लट के नाम लिख़वाकर उन विद्धानों को दे दिया । यह देख कर उन विद्धानों को बड़ी प्रसन्नता हुई कि उनके प्रयास सफल हुए हैं । वे विद्धान प्रसन्नतापूर्वक तत्काल दानपत्र को मनीषी कल्लट के पास ले कर गए और उन ब्रामणों ने यह दानपत्र महामनीषी कल्लट को सौंप दिया तो वे तुरंत अपनी पत्नी के साथ कश्मीर छोड़कर जाने की तैयारी करने लगे ।

काशी से आये ब्रामण विद्धानों ने उनसे ऐसा करने का कारण पूछा तो वे बोले - खेद का विषय है कि आप सबने अपरिग्रह को दरिद्रता समझ लिया है । अपरिग्रह ब्रामण के जीवन का चरम आदर्श होता है । ब्रामण होने का अर्थ जाति से नहीं वरन अपरिग्रह के रूप में समाज के सामने एक आदर्श की स्थापना करने से होता है जिसके माध्यम से हम समाज को एक सीख देने में सक्षम हो पाते हैं कि जीवन में उच्चता पैसों से नहीं अपितु सत्कार्यों से आती है । मैंने संपूर्ण ब्रामणत्व की आराधना की है और यही मेरे जीवन में ज्ञान का आधार है । काशी से आये उन विद्धानों को तुरंत अपनी गलती का अहसास हो गया और उन्होंने वह दानपत्र कश्मीर नरेश को वापिस लौटा दिया और महामनीषी से क्षमा मांगी ।                 

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